पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

रविवार, 30 सितंबर 2012

सुरेंद्रनगर (गुजरात) से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका 'नव्या'


बड़े भाई पंकज त्रिवेदी जी द्वारा प्रेषित एवं प्रकाशित नव्या का प्रिंट अंक अगस्त -अक्तूबर २०१२ अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है. इसलिए भी कि जब प्रारम्भिक दौर में इस पत्रिका का कलेवर और तेवर इतना प्रभावशाली है, तो इसका भविष्य सुनहरा ही होगा- ऐसा मेरा विश्वास है. पंकज त्रिवेदी जी तथा शीला डोंगरे जी को इस सुन्दर अंक के लिए हार्दिक बधाई. 

अगस्त अक्टूबर अंक में जो है....


सम्पादकीय: लुप्त होती लोक कला- शीला  डोंगरे 4
समीक्षा: शमशेर बहादुर सिंह- पंकज त्रिवेदी 5
कविता: 7-41
डॉ. जाधव सुनील, दीप्ति गुप्ता, सी.पी. मिश्र, डॉ. मंजरी शुक्ल, 
सुशीला शिवरण, डॉ. स्वाति नलावडे, निशा कुलश्रेष्ठ, समीर लाल, 
कविता विकास, डॉ. सारिका गुल, हिमकर श्याम, मंजू भटनागर, 
डॉ. सोंरूपा विशाल, चेतन रामकिशन
ग़ज़ल: सौरभ पण्डे 41 
लघुकथा: डॉ. बलवंत व्यास, संगीता सिंह तोमर 36
शख्शियत: विजेंद्र शर्मा 14
आलेख: लोकेन्द्र सिंह, हसमुख परमार 10 /18
कहानी: मुकेश श्रीवास्तव 20
साक्षात्कार: डॉ. सुधा ॐ धींगरा- डॉ. अनीता कपूर 26
ललित: मोहम्मद अहसान 32
विशेष: संजय मिश्रा हबीब 38
समाचार: 41 -44
कार्टून: मस्तान सिंह 45
प्रकीर्ण: 45

'नव्या' प्रिंट के साथ-साथ ई-पत्रिका के रूप में भी अपना स्थान रखती है. अगला अंक नवम्बर में प्रकाशित होने जा रहा है जिसका लोकार्पण समारोह नागपुर में होगा. प्रिंट पत्रिका के लिए, लेख, कविता, ललित, गजल, व्यंग आदि निम्न ईमेल (nawya.magazine@gmai.com) पर भेजे जा सकते हैं. 

Print Edition: Navya

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत शुक्रियां अवनीश जी... 'नव्या' को लोकाभिमुख करने के लिए....

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  2. श्री अवनिश सिंह चौहान द्वारा अपनी पत्रिका - 'पूर्वाभास' पर नव्या के लिये स्थान दिया गया है और अमूल्य सम्मान भी | हम उनके हृदयपूर्वक आभारी हैं - नव्या समूह

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  3. नव्या को उचित सम्मान देकर सहयोगत्मक सन्देश दिया है |
    सभी एक सा उद्देश्य लिए प्रकशित एकात्मक स्वर एकात्मक प्रतिमानों
    का ससम्मान आदर भाव भारतीय सिटी और संस्कृति की गौरवशाली
    परंपरा है, जिसका निर्वहन कर मिशल कायम करना श्रेष्ठकर लगा | इसके
    लिए साधुवाद - लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर

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