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सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

अनिल श्रीवास्तव 'मुसाफिर' और उनकी कविता — अवनीश सिंह चौहान

अनिल श्रीवास्तव 'मुसाफिर' 

संयुक्त राज्य अमेरिका (थॉमस पेन द्वारा सुझाया गया यह नाम ४ जुलाई, १७७६ के स्वतंत्रता के घोषणापत्र में आधिकारिक रूप से प्रयुक्त किया गया था) आज विश्व की एक महाशक्ति है। लघु रूप से इस नाम के लिए बहुधा 'संयुक्त राज्य' का भी उपयोग किया जाता है। हिन्दी भाषा में 'संयुक्त राज्य' या 'संयुक्त राज्य अमेरिका' के स्थान पर केवल 'अमेरिका' कहने का ही प्रचलन है, जो इस देश के लघु नाम के रूप मे उपयोग में लाया जाता है। अमेरिका को अपनी कर्मस्थली बनाने वाले श्री अनिल श्रीवास्तव 'मुसाफिर' की पहचान न केवल एक कुशल  अभियंता के रूप में है बल्कि एक लेखक, कवि एवं प्रकाशक के विशिष्ट उत्तरदायित्वों का भी निर्वहन आप बड़ी निष्ठां से कर रहे हैं। श्रीवास्तव जी 'द थिंक क्लब' (http://www.thethinkclub.com/) के संस्थापक हैं, जिसका उद्धेश्य लोगों में स्वतंत्र विचार को प्रोत्साहित करना है। अनिल श्रीवास्तव 'द थिंक क्लब' पत्रिका के प्रबंध सम्पादक भी हैं।  आपकी लेखनी मुख्यता अंग्रेजी भाषा में चलती रही है।  किन्तु अंग्रेज़ी में लगातार लिखते रहने पर भी हिन्दी और हिन्दुस्तान के प्रति आपका लगाव कम नहीं हुआ। शायद इसीलिये आप स्वान्तःसुखाय कभी-कभी हिन्दी में भी लिख लेते हैं। प्रवासी जीवन और उसके कारणों को व्यंजित करती आपकी एक कविता यहाँ प्रस्तुत है-

चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार

प्रवासी 

 नगर में मेला लगा हुआ था,
डगर पे दीये जले हुए थे,
कामिनी मचल रही थी,
हम स्वयं में सिमट रहे थे

महल आमोद से भरा था,
कमल प्रमोद के खिले थे,
हवा शीतल बह रही थी,
हम किंचित डरे हुए थे।

स्वर्ग मही पे आ बसा था,
ग्रीष्म में पुष्प लहराए थे,
शीत में हिम की चादर थी,
हम प्रवासी तो पराये थे

मात्र पाश्चात्य ही प्रबल था,
जैसे हम अधम और अबल थे,
मानो भारत एक अबला थी,
हम विस्मित और विव्हल थे

इधर अभिमान जाग उठा था,
उधर परिणाम अधूरे थे,
उदर की अग्नि जल रही थी,
हम कर्मठ और सबल थे

पश्चिम उन्माद में सोया था,
हम सोये से जग उठे थे,
जगत में होड़ चल पड़ी थी,
हम आगे बढ़ चुके थे

इतिहास पन्ना लिख रहा था,
कि वे बड़े अद्भुत प्रवासी थे,
धरती संशोधन कर रही थी,
वो तो गंगातट के वासी थे

4 टिप्‍पणियां:

  1. मुसाफिर जी की इस उम्दा रचना को पढ़वाने के लिए आभार!

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  2. इतिहास पन्ना लिख रहा था,
    कि वे बड़े अद्भुत प्रवासी थे,
    धरती संशोधन कर रही थी,
    वो तो गंगातट के वासी थे।.....बहुत खूब...

    जवाब देंहटाएं

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